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काशी पत्रकार संघ का इतिहास

काशी साहित्य और पत्रकारिता के सम्मिलन की धरती है। दोनों विधाओं की यह एकता देश के सामाजिक, सांस्कृतिक और साहित्यिक, यहां तक कि राजनीतिक चेतना को भी स्वस्थ, संतुलित और प्रगतिशील दृष्टि प्रदान करती है। काशी में ‘काशी पत्रकार संघ’ श्रमजीवी पत्रकारों का देश में सबसे पुराना 1940 में स्थापित संगठन हैं , जिसने अपने जन्मकाल से ही पत्रकारों के जायज़ अधिकारों तथा उनके हितों की रक्षा के प्रयास के साथ-साथ पत्रकारिता की गरिमा बनाये रखने के लिए निरंतर सकारात्मक प्रयास किये हैं। सन् 1940 में काशी पत्रकार संघ के प्रथम अध्यक्ष पंडित कमलापति त्रिपाठी चुने गये थे, लेकिन देश की स्वाधीनता की लड़ाई लड़ते हुए उनके राजनीतिक बंदी होने पर 1943 में पंडित दिनेश दत्त झा अध्यक्ष चुने गये जो 1946 तक अपने पद पर रहे। उस समय तक पराड़कर स्मृति भवन अस्तित्व में नहीं आया था। इसलिए ‘संघ’ की बैठकें संपादकाचार्य पंडित झा के आवास पर ही होती थीं जिसमें मुख्य विचारणीय विषय, पत्रों में प्रकाशित समाचारों में अनुवाद और प्रूफ संबंधित गलतियों पर चर्चा, समीक्षा और नये शब्द होते थे। प्रदेश प्रेस एसोसिएशन काशी में ही श्रमजीवी पत्रकार संघ के रूप में परिणित हुआ जिसने आगे चल कर अखिल भारतीय श्रमजीवी पत्रकार संघ के गठन में ख़ास भूमिका निभाई। समय समय पर सत्ता पक्ष और विपक्ष ने भी खुले मन से ‘संघ’ को सहयोग दिया, जो आज भी जारी है।

पराड़कर स्मृति भवन का इतिहास

सन् 1955 में हिंदी पत्रकारिता के प्राण तथा आलोक स्तम्भ संपादकाचार्य पंडित बाबूराव विष्णु पराड़कर के निधन के बाद ‘संघ’ ने उनकी गरिमा के अनुरूप उनकी स्मृति में एक भवन के निर्माण की योजना तैयार की जिससे भावी पत्रकार पराड़कर जी के व्यक्तित्व व कृतित्व से प्रेरणा लेकर पत्रकारिता के उच्च आदर्शों की रक्षा में भूमिका निभा सके। पंडित कमलापति त्रिपाठी पराड़कर जी के प्रिय शिष्य थे। प्रदेश के सूचना मंत्री पंडित कमलापति त्रिपाठी ने ही 15 अगस्त 1955 को पराड़कर स्मृति भवन का शिलान्यास किया। सन् 1970 में ईश्वर चंद्र सिनहा के अध्यक्ष चुने जाने पर ‘संघ’ की सक्रियता ने गति पकड़ी और पराड़कर स्मृति भवन से संलग्न उद्यान में पराड़कर जी की प्रतिमा स्थापित की गयी जिसका अनावरण उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री त्रिभुवन नारायण सिंह ने 16 नवंबर 1970 को किया। वर्ष 1976 में 01 अगस्त को तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी ने पराड़कर स्मृति भवन के प्रथम तल पर सभा कक्ष का शिलान्यास किया और उन्होंने इसके लिए अनुदान भी दिया। इस सभा कक्ष का उद्घाटन पत्रकारिता दिवस पर 1979 में प्रदेश के मुख्यमंत्री बनारसी दास ने किया। भवन के सुन्दरी व विस्तारीकरण के क्रम में शहर दक्षिणी के विधायक व पूर्व राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) डा॰ नीलकण्ठ तिवारी ने अपनी विधायक निधि (वर्ष 2021-22) से 16.02 लाख रुपए की लागत से निर्मित ‘कांफ्रेंस हाल’ का उद्घाटन 15 मार्च, 2023 को किया। इसके साथ ही समय समय पर अन्य जनप्रतिनिधियों ने भी पराड़कर स्मृति भवन के सुंदरीकरण व रखरखाव में आर्थिक सहयोग देते हुए अपनी भूमिका निभायी।

‘संघ’ का प्रतीक चिह्न

काशी पत्रकार संघ का प्रतीक चिह्न भी काशी का ही प्रतीक है। संघ के पूर्व मंत्री और व्यंग्यकार जगत शर्मा की कल्पना का मूर्त रूप है ‘संघ’ का प्रतीक चिह्न। त्रिकोण की आकृति के इस प्रतीक चिह्न में बीच में कलम बनी है, जिसकी निब पर शंकर के तीसरे नेत्र की तरह आंख बनी हुई है, जो स्थायी तथा तीक्ष्ण दृष्टि का प्रतीक है। कलम के दोनों ओर त्रिकोण भुजाओं से ‘संघ’ की सुरक्षा हो रही है। काशी, पत्रकार और संघ तीनों की सार्थकता व्यक्त करता है ‘संघ’ का प्रतीक चिह्न। काशी हिंदी पत्रकारिता की जन्म स्थली है और संपादकाचार्य पंडित बाबूराव विष्णु पराड़कर, रधुनाथ गोविंद थत्ते, पंडित लक्ष्मण नारायण गर्दे, रामकृष्ण रधुनाथ खाडिलकर, विद्याभास्कर, श्यामा प्रसाद ‘प्रदीप’, चंद्र कुमार, दीनानाथ गुप्त, लक्ष्मी शंकर व्यास, ईश्वर देव मिश्र, पारसनाथ सिंह, मनोरंजन कांजिलाल सरीखे कलमकारों की लंबी श्रृंखला है जिन पर गर्व है। पराड़कर स्मृति भवन सुविधाओं से युक्त है। एक समृद्ध लाइब्रेरी भी है। बहुउद्देशीय सभागार के साथ साथ 200 लोगों की क्षमता का सभागार है। साथ ही दो संगोष्ठी कक्ष भी हैं।

पत्रकार के धर्म

अवसर मत खोइए, बहुज्ञानि बनिए। नवीनता प्रदर्शन से मत चूकिए।

दृढ़ रहिये पर हठी नहीं। परिवर्तनीय बनिए, पर कमजोर नहीं।

पत्रकारिता में जड़ता मृत्युवत है। अपने पत्र के सुनाम पर गर्व कीजिये।

स्पस्टवादी, सचेस्ट, एवं स्फूर्तिमय रहिये, तभी आपका सम्मान होग।

तलवार और पैसा दोनों कलम के दुश्मन है। जरुरत पड़े तो सम्मान के लिए धन की परवाह न करे।